अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस..
*चिकित्सा से पहले इंसानियत*
*खरसिया में दिल जीत रहे युवा डॉक्टर, वरिष्ठ भी सक्रिय*
ठंड के एक उजले दिन की वह घटना आज भी मेरी स्मृति में ताज़ा है। एक गाँव में दशकर्म कार्यक्रम चल रहा था। कार्यक्रम स्थल पर एक सज्जन कुर्सी पर बैठे गुनगुनी धूप का आनंद ले रहे थे। उनके चेहरे पर शांति और मुस्कान का मिलाजुला भाव था और उनका मस्तमौला व्यक्तित्व दूर से ही आकर्षित कर रहा था।
तभी एक बुजुर्ग ने उन्हें देखते ही हैरानी से कहा— “अरे प्यारेमोहन! सुना था कि तबीयत बहुत खराब हो गई थी… लोग तो कहते थे कि तुम पागल जैसे हो गए थे… लेकिन अब तो बिल्कुल ठीक लग रहे हो!”
प्यारेमोहन मुस्कराए और बोले— “काका, आपकी बात सही है। हालात बहुत बिगड़ चुके थे। घर के लोग इलाज करवा रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था। फिर मैंने घर के लोगों की बातों को तवज्जों न देकर स्वयं ही डॉक्टर ढूंढने निकल पड़ा। इस दौरान एक ऐसे डॉक्टर से मिला जिनकी आत्मीयता ने मेरे मन को छू लिया और मैनें निश्चय किया कि अब मेरा इलाज यही डॉक्टर करेंगे।”
उन्होंने आगे बताया कि वे डॉक्टर उनकी बीमारी के विशेषज्ञ नहीं थे लेकिन उनके स्नेहिल व्यवहार, आत्मीय संवाद और मानवीय स्पर्श ने उन्हें मानसिक रूप से बहुत मजबूत बनाया, और कुछ दिनों की सेवा, समर्पण व विल पॉवर से वे बिल्कुल स्वस्थ हो गए।
उन्हें देखकर व उनकी बातों को सुनकर यह समझ में आया कि कभी-कभी डॉक्टर की बातों की दवा भी शरीर की दवा से अधिक असरदार होती है।
वास्तव में मधुर व्यवहार चिकित्सा की मौन शक्ति है। डॉक्टर का व्यवहार केवल औपचारिक शिष्टाचार नहीं बल्कि चिकित्सा प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है। कई बार मरीज शारीरिक बीमारी से अधिक मानसिक उलझनों में फँसा होता है और एक डॉक्टर की करुणा-भरी मुस्कान ही उसकी आधी बीमारी हर लेती है। एक स्नेहमयी दृष्टि, एक सहानुभूति भरी बात — यह सब दवा की डोज से कहीं अधिक असर करती है।
एक महिला, जो वर्षों से मानसिक तनाव में थी, जब एक डॉक्टर ने न केवल उसका इलाज किया बल्कि उसे सुना, तो वह खुद को धीरे-धीरे ठीक होता महसूस करने लगी। डॉक्टर ने चिकित्सा के साथ-साथ उसे यह एहसास दिलाया कि वह अकेली नहीं है।
मनोवैज्ञानिक शोध भी इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि जब डॉक्टर का व्यवहार सकारात्मक होता है तो मस्तिष्क में डोपामिन और ऑक्सिटोसिन जैसे रसायन सक्रिय होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और दवाओं का असर कई गुना कर देते हैं।
हमारे खरसिया के युवा डॉक्टर क्षेत्र के लिए उम्मीदों की नई सुबहें हैं। खरसिया जैसे अर्ध-शहरी क्षेत्र में अब आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के साथ युवा डॉक्टरों की एक प्रेरणादायक पीढ़ी उभर रही है जो न केवल ज्ञान में पारंगत हैं बल्कि अपने व्यवहार से मरीजों के दिल भी जीत रहे हैं।
डॉ. दिलेश्वर पटेल — पद्मावती अस्पताल में उनकी सेवाएं हमेशा उपलब्ध रहती हैं। वे न हों तो उनके स्टाफ की सेवाएँ चौबीस घंटे उपलब्ध रहती हैं। युवा डॉ. का सौम्य स्वभाव और गहन संवेदनशीलता मरीजों को आत्मविश्वास से भर देती है।
डॉ. त्रिभुवन साहू और डॉ. जया साहू — दोनों का मिलनसार व्यवहार और समर्पण आज उन्हें हर वर्ग के लोगों में प्रिय बनाता जा रहा है।
डॉ. हितेश गबेल, डॉ. आर. के. पटेल, डॉ. राजन सिन्हा, डॉ. रश्मिता पटेल, डॉ. सौरभ अग्रवाल, डॉ. मिथलेस साहू, डॉ. विकास अग्रवाल, डॉ. सोनम अग्रवाल — इन सभी डॉक्टरों में चिकित्सा के साथ-साथ इंसानियत की एक गहराई दिखाई देती है।
खरसिया के डॉक्टरों की एक विशेषता यह भी है कि वे मरीजों से उनकी अपनी बोली में बात करते हैं जैसे — “का होइस बबा?”, “दाई, अब कइसे लागत हे?” — ऐसे शब्दों में जो अपनापन झलकता है वह किसी औषधि से कम नहीं। यह भाषाई आत्मीयता मरीज को एहसास दिलाती है कि डॉक्टर केवल उनका इलाज ही नहीं कर रहा बल्कि उनकी चिंता में सहभागी भी है।
डॉक्टर के पेशे में तकनीकी दक्षता ज़रूरी है लेकिन उससे कहीं अधिक ज़रूरी है संवेदना। खरसिया के युवा डॉक्टर यह साबित कर रहे हैं कि अच्छे इलाज के साथ अगर आत्मीयता, सहानुभूति और मानवीयता जुड़ जाए तो चिकित्सा रोग का इलाज तो करती ही है साथ ही एक नई जिंदगी देने वाला कार्य बन जाती है।
इन युवा चिकित्सकों के साथ-साथ वरिष्ठ चिकित्सक भी लगातार सक्रिय रहकर क्षेत्र की जनता का ख्याल रख रहे हैं जिनमें डॉ. आर.सी. अग्रवाल, डॉ. तिवारी, डॉ. सजन अग्रवाल, डॉ सुरेश राठिया, डॉ विक्रम राठिया, जिनसे चिकित्सा सेवा प्राप्त करने बहुत दूर-दूर से मरीज पहुँचते हैं। डॉ. आर.सी.अग्रवाल के क्लिनिक में मरीजों की भीड़ लगी रहती हैं और वे कई बार अपनी शारीरिक तकलीफों के बावजूद मरीजों को परामर्श देने उपलब्ध रहते हैं।
खरसिया क्षेत्र में पूर्व से सेवारत महिला चिकित्सकों में डॉ. षड़ंगी और डॉ. ललिता राठिया के बारे में क्या लिखूँ! महिला चिकित्सा के लिए वरदान हैं आप दोनों। ना जानें कितनी माताओं की दुआएँ हैं आप लोगों के साथ। ना जाने कहॉं-कहॉं व कितनी दूर से माताएँ-बहनें यहॉं तक पहुँचती हैं और अपने प्रिय डॉ. से भेंंटकर राहत की सॉंस लेती हैं। खासकर मातृशक्तियॉं गर्भवती महिलाएँ, जिन्हें यह पता चलते कि डॉ. साहिबा उपलब्ध हैं, उनकी सारी चिंताएँ दूर होती देखी गई हैं।
वास्तव में इंसानियत से भरी चिकित्सा ही सच्ची चिकित्सा है।
ऐसे चिकित्सकों को सिर्फ “डॉक्टर” कहना उनकी गरिमा को छोटा करना होगा — वे सेवक हैं, सृजक हैं और समाज में आशा के दीपक हैं।
अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर आप सभी चिकित्सकों को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएँ व सादर प्रणाम!
— राकेश नारायण बंजारे
खरसिया