Saturday, April 19, 2025
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जनजातीय गौरव दिवस पर विशेष आयोजन

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खरसिया (छत्तीसगढ़)

जल, जंगल, जमीन और स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने वाले जननायक महान बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड के उलीहातू गांव में हुआ था। उनका जीवनकाल मात्र 24 वर्ष और 7 महीने का रहा। इतनी अल्पायु में भी वे जनजातीय समाज में धरती आबा (धरती पिता) और भगवान के रूप में पूजनीय बन गए।
तात्कालीन बिहार और वर्तमान झारखंड में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उलगुलान (क्रांति) का आह्वान करने वाले बिरसा का जन्म 15 नवंबर 1875 को उनके पिता सुगना मुंडा और माता करमी हातू की गोद में हुआ।
जंगल के हक और अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेजी सत्ता के सामने कभी घुटने नहीं टेके। उन्होंने केवल तीर-कमान के सहारे अन्याय के खिलाफ लड़ाई का बिगुल बजाया और स्वतंत्रता की आग में कूद पड़े।
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में अधिकांश जनमानस अंग्रेजी शासन को अपनी नियति मान चुका था। उजाले की हर आशा धूमिल हो चुकी थी और हर ओर अंधकार का साम्राज्य था। ऐसे समय में जनमानस को यह विश्वास दिलाना कि अंधकार का अंत निश्चित है और अमावस के बाद सूरज का उदय होता ही है, एक बड़ी चुनौती थी।
महज 20 वर्ष की आयु में बिरसा मुंडा ने क्रांति के बीज बोए। अपनी पहली गिरफ्तारी के समय उनकी उम्र बीस वर्ष से भी कम थी। उन्होंने अपने समाज के सुप्त चेतना को जगाया और स्वाभिमान का बोध कराया। उन्होंने मूल निवासियों को यह सिखाया कि वे गुलाम नहीं हैं, बल्कि इस देश के असली रहवासी हैं।
जब अंग्रेजी शासन और जमींदारी प्रथा के तहत जल, जंगल और जमीन से धरतीपुत्रों को बेदखल करने का षड्यंत्र किया गया, तब बिरसा ने क्रांति का शंखनाद किया। उन्होंने जमींदारी प्रथा और सूदखोरी के खिलाफ संघर्ष करते हुए मातृभूमि को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने का प्रण लिया।
बिरसा मुंडा ने कहा था, “समाज का कोई एक नेता मत बनाओ, क्योंकि यदि तुम किसी को नेता बनाओगे तो शत्रु उसे या तो पैसे से खरीद लेगा या गोली से खत्म कर देगा। उसके बाद तुम्हारा समाज फिर अनाथ हो जाएगा। बारिश में उगती घास की तरह एक साथ बढ़ो, ताकि दुश्मन यह समझ ही न सके कि असली नेता कौन है।” ऐसे रणनीतिक और दूरदर्शी विचारों के धनी महान बिरसा मुंडा आज भी प्रेरणा के स्त्रोत हैं।
15 नवंबर, बिरसा मुंडा जयंती के अवसर पर विशेष आयोजन हुआ।
15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर धूर आदिवासी अंचल बरगढ़ खोला के ग्राम बर्रा में बिरसा मुंडा जयंती कार्यक्रम में सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ग्राम की सरपंच सम्माननीय श्रीमती उमा राठिया जी के आमंत्रण पर इस कार्यक्रम में क्षेत्र की बीडीसी श्रीमती अर्चना सिदार जी और बीडीसी श्रीमती संतोषी राठिया जी की गरिमामयी उपस्थिति के साथ अन्य सम्माननीय अतिथियों, गणमान्यजनों, ग्राम की मातृशक्ति और जनमानस की विशेष उपस्थिति रही।
कार्यक्रम का शुभारंभ धरती आबा बिरसा मुंडा के छायाचित्र पर दीप प्रज्वलन और पुष्पांजलि अर्पण से हुआ। इसके बाद उपस्थित जनसमूह ने अपने परिवेश को स्वच्छ और साफ-सुथरा रखने के लिए व नशामुक्ति की शपथ ली। साथ ही, भारतीय संविधान की प्रस्तावना का वाचन किया गया, जो इस आयोजन की एक विशेषता रही।
कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण रहे –
🏹 कार्यक्रम सादगीपूर्ण आयोजन की मिसाल रही। सीमित बजट में भी यह आयोजन बेहद गरिमामयी और प्रभावी रहा। छायाचित्र, दीप, पुष्प, माइक, दरी, चाय, पानी, स्वल्पाहार और कुछ कुर्सियों के माध्यम से सादगीपूर्ण तरीके से जनजागरूकता का संदेश दिया गया।
🏹 सामान्य से साधनों में संदेश की व्यापकता रही। विशाल पंडाल, बड़े साउंड सिस्टम, या जरूरत से अधिक प्रचार-प्रसार के बिना भी आयोजन की सफलता ने यह दिखाया कि मुद्दे की बात सीमित संसाधनों में भी दूर तक पहुँचाई जा सकती है।
🏹 श्रद्धा का सरल प्रदर्शन विशेष रहा। महापुरुषों की जयंती में पहले जहाँ पूजा-पाठ और अन्य औपचारिकताओं पर जोर दिया जाता था, वहीं इस कार्यक्रम में अतिथियों ने केवल श्रद्धा के साथ बिरसा मुंडा के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित करते सिर झुकाकर सम्मान व्यक्त किया।
🏹 संविधान की महत्ता पर जागरूकता ने ध्यानाकर्षित किया। संविधान की प्रस्तावना का वाचन और उसकी आवश्यकता पर जोर दिया गया। इसे पढ़ने और समझने की महत्ता के प्रति जागरूकता स्पष्ट रूप से दिखाई दी।
🏹 महिला सशक्तिकरण का प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा। सरपंच उमा राठिया जी, बीडीसी अर्चना सिदार जी और बीडीसी संतोषी राठिया जी जैसी महिलाओं ने निर्भीकता और कुशल नेतृत्व के साथ अपने तथ्यपूर्ण विचार व्यक्त किए। यह महिला सशक्तिकरण का एक आदर्श उदाहरण रहा।
🏹 विविध जनसमूह की उपस्थिति रही। कार्यक्रम में जनप्रतिनिधियों, शासकीय सेवकों, सेवानिवृत्त कर्मचारियों, किसानों, मजदूरों, समाजसेवियों और गृहणियों ने सहभागिता की।
🏹 वक्ताओं की विविधता और तथ्यों पर स्पष्ट विचार रहे। लगभग 12 से 15 वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने न केवल बिरसा मुंडा के संघर्ष को उजागर किया बल्कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और भारतीय संविधान को भी याद किया।
🏹 सामाजिक मुद्दों की समझ अनुकरणीय रही। सामान्य वक्ताओं ने जल, जंगल, जमीन और पेशा कानून जैसे विषयों पर अपने अनुभव और विचार प्रस्तुत किए। भुक्तभोगियों के विचार तथ्यात्मक और अकाट्य रहे, जो उनकी जमीनी समझ को दर्शाते हैं।
🏹 युवाओं की भूमिका पर भी चर्चा किया गया। जहाँ जागरूक युवाओं की सराहना की गई, वहीं अन्य युवाओं की उदासीनता, आवारागर्दी और शराबखोरी पर वक्ताओं ने चिंता जाहिर की।
यह आयोजन न केवल धरती आबा बिरसा मुंडा के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक था बल्कि सामाजिक जागरूकता और जनमानस को जोड़ने का एक प्रेरणादायक प्रयास भी रहा।

— राकेश नारायण बंजारे
खरसिया.

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