करही की महानदी: अवैध रेत उत्खनन की दर्दनाक दास्तां, कुछ दिन पहले ही निगल गई एक युवा उप सरपंच की जान सक्ती जिले के करही गांव की महानदी किनारे की मिट्टी आज भी खून के धब्बों से लाल है। जिस धरती ने अपने युवा उप सरपंच महेंद्र बघेल जैसे होनहार बेटे को खो दिया, वहां आज फिर से वही मंजर देखने को मिल रहा है—अवैध रेत उत्खनन का धंधा।
महेंद्र बघेल की हत्या हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं। परिवार तो छोड़िए, गांव के लोग भी उस सदमे से उबर नहीं पाए हैं। अभी तो उनका दशगात्र भी पूरा नहीं हुआ, आत्मा को शांति भी नहीं मिली, और फिर वही करही की महानदी में रेत माफिया का आतंक खुलेआम लौट आया है।
उस दिन खनिज विभाग के अधिकारी कुछ कागजों पर खानापूर्ति और डभरा परिक्षेत्र में ताबड़तोड़ कार्रवाई दिखाकर खुद को बचा लिया। लेकिन असली सवाल वहीं का वहीं है– *करही गांव में चल रहा धंधा उन्हें क्यों नहीं दिख रहा? क्या उनकी आंखों पर पर्दा पड़ा है, या फिर उन्हें एक होनहार जनप्रतिनिधि की बलि भी मामूली लगती है?*
*गांव और क्षेत्र के लोग पूछते हैं—*
*क्या एक युवा की जान की कोई कीमत नहीं?*
*क्या विभाग किसी और बड़ी अनहोनी का इंतजार कर रहा है?*
*या फिर गांव की माताओं-बहनों की चीख सुनाई नहीं देती?*
महेंद्र बघेल ने अपनी जान गंवाई, पर उसकी बलि किसी एक परिवार की नहीं, पूरे गांव की पीड़ा बन गई है। रेत उत्खनन के खिलाफ समय रहते कार्रवाई हो जाती तो शायद आज यह दर्दनाक कहानी न लिखनी पड़ती।
*अब सवाल है—कब तक करही की महानदी इस तरह लहूलुहान होती रहेगी? कब तक अधिकारी केवल फाइलों और दिखावटी छापों से अपने दामन को बचाते रहेंगे?*
यह लेख सीधे उन संबंधित विभागीय अधिकारियों से सवाल कर रहा है जो करही की सच्चाई जानते हुए भी आंख मूंदे बैठे हैं। अगर अभी भी कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले समय में यह नदी न जाने कितने घरों को उजाड़ देगी।
करही की महानदी पुकार रही है
बस करो अब और नहीं..।

