Saturday, June 7, 2025

माता रमाई के त्याग और बलिदान के आजीवन ॠणी रहेंगे — राकेश नारायण*

Must Read

*माता रमाई के त्याग और बलिदान के आजीवन ॠणी रहेंगे — राकेश नारायण*

माता रमाबाई अंबेडकर भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की अर्धांगिनी थीं। बाबा साहब के संघर्षों में माता रमाई के त्याग व बलिदान का अहम योगदान है।

पति-पत्नी जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए होते हैं। जीवन रथ को सही दिशा में संतुलित रूप से आगे बढ़ाने में दोनों पहियों का समान योगदान रहता है। बाबा साहब जब सामाजिक जीवन में संघर्षरत थे तब माता रमाई पारिवारिक संघर्ष का भार वहन कर रहीं थीं। जिस तरह बाबा साहब के लिए सामाजिक संघर्ष का दौर कठिन था उसी तरह माता रमाई के लिए परिवार को चलाना कठिन से कठिनतर था। बाबा साहब जब विद्याध्ययन के लिए विदेश गए उस दौरान माता रमाई ने बड़ी कठिनाई से परिवार को सम्भाला। इस दौरान उन्होंने अपने संघर्षों व दुखों को छुपाए रखा ताकि बाबा साहब के पढ़ाई में व्यवधान न पहुँचे। बाबा साहब के सामाजिक संघर्षों पर उन्होने पारिवारिक दायित्यों की ऑंच भी नहीं आने दी। उन्होंने बाबा साहब के मिशन को जारी रखने में अपना संपूर्ण योगदान दिया। बाबा साहब का मिशन पारिवारिक दायित्वों में उलझकर न रह जाए, इस बात का ध्यान रखा और उन्हें अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए सदैव प्रेरित करतीं रहीं। वे बाबा साहब की क्षमता, योग्यता व करोंड़ों लोगों के प्रति उनकी अहमियत समझती थीं। वे भलीभांति जानती थीं कि यदि बाबा साहब पारिवारिक दायित्वों में उलझकर रह जाएँ तो लाखों-करोड़ों वंचितों के हक और अधिकार का सपना, केवल सपना ही बनकर रह जाएगा अत: माता रमाई ने लाख तकलीफ सहकर भी अपने तकलीफों को बाबा साहब के मार्ग का रोड़ा नहीं बनने दिया। माता रमाई के त्याग और बलिदान देखकर स्वयं बाबा साहब नतमस्तक थे। वे कहते थे, “रमाई मेरे हर कदम पर तुम्हारा साथ रहा। तुमने करोड़ों वंचितों के प्रति मेरे कर्तव्य को पहचाना। इस कर्तव्य मार्ग के निर्वहन में तुमने अनेक कष्ट सहे।”

माता रमाई का जन्म 07 फरवरी 1898 को एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम भिकु धुत्रे व माताजी का नाम रुक्मिणी था। वे वणाद गांव के महारपुरा बस्ती में रहते थे। सन् 1906 में डॉं भीमराव अम्बेडकर और माता रमाबाई विवाह बंधन में बंधे। बाबा साहब को रमाबाई ‘साहब’ कहकर बुलाती थीं। बाबा साहब और रमाबाई के पांच बच्चे यशवंत, गंगाधर, रमेश, इंदू और राजरत्न हुए जिनमें यशवंत को छोड़कर बाकी के सभी चार बच्चों का बचपन में ही निधन हो गया।

बचपन से ही रमाबाई ने अनेक कष्ट सहे थे। गृहस्थ जीवन में आर्थिक तंगी, गरीबी और बीमारी से चार-चार बच्चों की अकाल मृत्यु के बावजूद भी उन्होंने क्रांति की ज्वाला बूझने नहीं दी। विपरित परिस्थितियों में भी संघर्ष करती रहीं। बाबा साहब के संघर्षों के पीछे माता रमाबाई के त्याग, बलिदान और समर्पण की विशाल ऊर्जा रही है।

27 वर्ष के दांपत्य जीवन के बाद बहुत कम उम्र में ही माता रमाई ने अपने प्राण त्याग दिए।

बीमारी से लड़ते हुए 27 मई 1935 को उनकी मृत्यु हो गई। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने बाबा साहब का हाथ पकड़ कर कहा था, “मेरे सात करोड़ बच्चों का ध्यान रखना। उनके मान-सम्मान की रक्षा करना।”

चार-चार बच्चों को असमय खोने, दुःख पीड़ा के बावजूद भी वंचितों की चिंता माता रमाई के अतुलनीय त्याग और समर्पण को दर्शाता है। माता रमाई के उपकारों और संघर्षों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संघर्षों की बदौलत हमें जो अधिकार मिले हैं उनमें माता रमाई के त्याग और समर्पण का बहुत बड़ा योगदान है। डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब में रमाबाई का जिक्र करते हुए लिखा है कि मेरी पत्नी का मेरे जीवन पर गहरा असर था। माता रमाई में करूणा, ममता और मानवीय भावनाए स्वाभाविक थी जिनका असर बाबा साहब पर भी था। बाबा साहब डॉ.अंबेडकर ने 1940 में प्रकाशित ‘थॉट्स ऑफ पाकिस्तान’ नाम की अपनी पुस्तक में अपने जीवन पर रमाबाई के प्रभाव को स्वीकार किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक को रमाबाई को समर्पित किया।  उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि “मामूली भीमा से डॉ. अंबेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को जाता है।”

बाबा साहब संघर्षों में आगे रहे लेकिन पर्दे के पीछे माता रमाई का संघर्ष भी कम न रहा। माता रमाई अपने ऑंसुओं से भरे ऑंचल को सदैव छुपाकर रखती थीं जिससे बाबा साहब के कदम न लड़खड़ाने पाए।

माता रमाई हम आपके संघर्ष, बलिदान और त्याग के आजीवन ॠणी रहेंगे।

— राकेश नारायण बंजारे   खरसिया

Latest News

11 जून के आंदोलन में हजारो की संख्या में शामिल होंगे खरसिया विधान सभा के रहवासी ,

11 जून के आंदोलन में हजारो की संख्या में शामिल होंगे खरसिया विधान सभा के रहवासी , कैसी दोहरी मापदंड...

More Articles Like This